रोमियों 9:1-5
“मैं मसीह में सत्य कहता हूं और झूठ नहीं बोलता, मेरी आत्मा पवित्र आत्मा के द्वारा मेरी गवाही देती है कि मुझे बड़ी चिंता और अपने मन में नित्य पीड़ा होती है।“
(रोमियों 9:1-2)
क्रिस्चियन जीवन केवल व्यक्तिगत आशीषों तक सीमित नहीं है—यह एक बुलाहट है, एक मिशन है, एक आत्मिक जिम्मेदारी है। जब हम पॉल (पौलुस) की बात करते हैं, तो हम एक ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो न केवल मसीह के प्रेम से भरपूर था, बल्कि उसके दिल में अपने लोगों—अपने भाइयों के लिए एक अग्नि और पीड़ा थी। यही जुनून और दर्द उसे प्रेरित करता था कि वह परमेश्वर के राज्य के लिए निरंतर कार्य करता रहे।
1. पवित्र आत्मा से संबंध: मार्गदर्शन और सच्चाई का स्रोत
पौलुस जब यह कहता है कि वह सत्य कह रहा है, वह यह भी पुष्टि करता है कि वह पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर बोल रहा है। आज भी, यदि हम सच्चे आत्मिक जीवन को जीना चाहते हैं, तो हमें पवित्र आत्मा के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाना होगा।
- पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शक, सलाहकार और सांत्वनादाता है।
- वह हमें लोगों के लिए प्रार्थना करने और सुसमाचार साझा करने की प्रेरणा देता है।
2. पौलुस का दर्द: अपने लोगों के लिए आत्मिक बोझ
“दुख” का अर्थ केवल शारीरिक पीड़ा नहीं है, यह उस आत्मिक तनाव और पीड़ा को भी दर्शाता है जो हमें तब होती है जब हम अपने प्रियजनों को बिना मसीह के खोते हुए देखते हैं।
- पौलुस अपने लोगों की आत्मिक स्थिति को देखकर टूट गया था।
- उसे इस बात का दुख था कि वे उद्धार से वंचित हैं।
- यदि हम वास्तव में अपने परिवार, मित्रों और समाज से प्रेम करते हैं, तो हम उन्हें आत्मिक मृत्यु की ओर नहीं जाने देंगे।
3. तीन बातें जो हमें याद रखनी चाहिए
(1) उद्धार परमेश्वर का एक उपहार है
उद्धार कोई अर्जित की गई वस्तु नहीं है, यह परमेश्वर का निःशुल्क उपहार है।
रोमियों 1:16 – “मैं सुसमाचार से लज्जित नहीं हूं, क्योंकि यह हर एक विश्वास करनेवाले के लिए परमेश्वर की सामर्थ है।“
रोमियों 3:23 – “सब ने पाप किया है, और परमेश्वर की महिमा से वंचित हैं।“
रोमियों 6:23 – “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।“
यह जानना आवश्यक है कि हम सब पापी थे, लेकिन परमेश्वर ने हमें अपनी दया से बचाया।
(2) यीशु सभी से प्रेम करते हैं
रोमियों 5:8 – “परमेश्वर ने हम पर अपना प्रेम इस रीति से प्रगट किया कि जब हम पापी ही थे, तब मसीह हमारे लिए मरा।“
रोमियों 8:1 – “जो मसीह यीशु में हैं, उन पर अब दंड की आज्ञा नहीं।“
- परमेश्वर हमें हमारे कर्मों के आधार पर नहीं, बल्कि मसीह के बलिदान के आधार पर स्वीकार करता है।
- रोमियों 8:38-39 – “कोई भी वस्तु हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती।“
- हमें अविश्वासियों से भी प्रेम करना चाहिए, जैसा मसीह ने हमसे किया।
(3) खोए हुओं को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है
रोमियों 1:14 – “मैं यूनानियों और अन्यों का, बुद्धिमानों और मूर्खों का, सब का कर्जदार हूं।“
- इसका अर्थ है कि हमें सुसमाचार को सभी के साथ साझा करने का दायित्व मिला है।
- यह कार्य हमारी बुद्धि, योजना या सामर्थ्य से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से होता है।
प्रेम में सुसमाचार बांटना:
- लोगों को यीशु के प्रेम का अनुभव करवाएं।
- प्रार्थना करें कि परमेश्वर उनके दिलों में काम करे।
- शैतान को अपने प्रियजनों के जीवन में प्रवेश न करने दें।
- उन्हें बताएं कि केवल यीशु ही उद्धार दे सकते हैं।
पौलुस की निरंतरता: न रुकना, न थकना
रोमियों 8:38 – “मैं निश्चय जानता हूं कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानता… कोई भी चीज़ हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती।“
- पौलुस कभी रुका नहीं, कभी थका नहीं।
- हर दिन, वह सुसमाचार प्रचार में लगा रहा।
यह हमारे लिए एक उदाहरण है—कि जब तक हम जीवित हैं, हमें परमेश्वर के राज्य के लिए जीना है।
क्या आपके दिल में भी वह बोझ है?
क्या आप उन लोगों के लिए बोझ अनुभव करते हैं जो अभी भी मसीह से दूर हैं?
क्या आप अपने प्रियजनों को अनन्त जीवन का मार्ग दिखाने के लिए तैयार हैं?
- यह समय है कि हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों की आत्मा की चिंता करें।
- मसीह की आत्मा हममें वही पीड़ा और प्रेम जगाए जो पौलुस में था।
आइए, हर दिन अपने जीवन से यह दिखाएं कि परमेश्वर का राज्य हमारी प्राथमिकता है। सुसमाचार का प्रचार करें, प्रेम में जिएं, और दूसरों को भी जीवन का मार्ग दिखाएं।
परमेश्वर आपको बहुतायत से आशीष दे!